Tuesday, July 12, 2011


वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !

वर दे, वीणावादिनि वर दे।

ब्‍लॉग में कुछ अपनी रचनाएं /कृतित्‍व प्रस्‍तुत करने के पूर्व माता सरस्‍वती को प्रणाम करते हुए निराला जी की पंक्ति से प्रथम पुष्‍प अर्पित करता हूं।

Saturday, August 7, 2010

प्रिय साथियों,
वस्‍तुत: यह ब्‍लॉग मैने राजभाषा हिन्‍दी को समर्पित करने के लिए बनाया है। आप राजभाषा हिन्‍दी के विकास को समर्पित सकारात्‍मक सुझावों से अवगत कराएं तो प्रसन्‍नता होगी। विश्‍व के मानचित्र में हिन्‍दी की अपनी एक पहचान है। संकीर्ण मानसिकता एवं स्‍वार्थ की राजनीति ने हिन्‍दी के आलोक को किंचित धूमिल करने का प्रयास जरूर किया है किंतु वे असफल हैं। हिन्‍दी किसी क्षेत्र, अंचल, राज्‍य विशेष की भाषा नहीं है, यह अखिल भारत की भाषा है, अखिल विश्‍व की भाषा है। आइए इस सार्वभौमिक भाषा के उत्‍थान, उन्‍नयन में अपने उत्‍साह, ऊर्जा के पुष्‍प समर्पित करें।